यूँ तिरे हुस्न की तस्वीर ग़ज़ल में आए
जैसे बिल्क़ीस सुलेमाँ के महल में आए
जब्र से एक हुआ ज़ाएक़ा-ए-हिज्र-ओ-विसाल
अब कहाँ से वो मज़ा सब्र के फल में आए
ये भी आराइश-ए-हस्ती का तक़ाज़ा था कि हम
हल्क़ा-ए-फ़िक्र से मैदान-ए-अमल में आए
हर क़दम दस्त-ओ-गरेबाँ है यहाँ ख़ैर से शर
हम भी किस मारका-ए-जंग-ओ-जदल में आए
ज़िंदगी जिन के तसव्वुर से जिला पाती थी
हाए क्या लोग थे जो दाम-ए-अजल में आए
ग़ज़ल
यूँ तिरे हुस्न की तस्वीर ग़ज़ल में आए
नासिर काज़मी