इस दुख में हाए यार यगाने किधर गए
सब छोड़ हम को ग़म में न जाने किधर गए
जो उस परी को शीशा-ए-दिल में करे थे बंद
वे इल्म-ए-आशिक़ी के सियाने किधर गए
फ़ौजें जुनूँ की देख के यक-बारगी सभी
इस मुल्क-ए-दिल से अक़्ल के थाने किधर गए
मालूम है किसू को कि वो आज शोला-ख़ू
हम को जला के आग लगाने किधर गए
ढूँडा बहुत पा हम ने न पाया उन्हों का खोज
दिल को चुरा के हम से छुपाने किधर गए
'हातिम' के दिल को मिसरा-ए-अव्वल ने ख़ूँ किया
इस दुख में हाए यार यगाने किधर गए
ग़ज़ल
इस दुख में हाए यार यगाने किधर गए
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम