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जो तसव्वुर से मावरा न हुआ | शाही शायरी
jo tasawwur se mawara na hua

ग़ज़ल

जो तसव्वुर से मावरा न हुआ

इक़बाल सुहैल

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जो तसव्वुर से मावरा न हुआ
वो तो बंदा हुआ ख़ुदा न हुआ

दिल अगर दर्द-आश्ना न हुआ
नंग-ए-हस्ती हुआ हुआ न हुआ

रूतबा-दाँ था जबीन-ए-इश्क़ का मैं
हुस्न के दर पे जब्हा सा न हुआ

दिल ख़ता-वार-ए-इश्तियाक़ सही
लब गुनहगार-ए-इल्तिजा न हुआ

नंग है बे-अमल क़ुबूल-ए-बहिश्त
ये तो सदक़ा हुआ सिला न हुआ