जो तसव्वुर से मावरा न हुआ
वो तो बंदा हुआ ख़ुदा न हुआ
दिल अगर दर्द-आश्ना न हुआ
नंग-ए-हस्ती हुआ हुआ न हुआ
रूतबा-दाँ था जबीन-ए-इश्क़ का मैं
हुस्न के दर पे जब्हा सा न हुआ
दिल ख़ता-वार-ए-इश्तियाक़ सही
लब गुनहगार-ए-इल्तिजा न हुआ
नंग है बे-अमल क़ुबूल-ए-बहिश्त
ये तो सदक़ा हुआ सिला न हुआ
ग़ज़ल
जो तसव्वुर से मावरा न हुआ
इक़बाल सुहैल