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तमन्ना शायरी | शाही शायरी

तमन्ना

29 शेर

जीने वालों से कहो कोई तमन्ना ढूँडें
हम तो आसूदा-ए-मंज़िल हैं हमारा क्या है

महमूद अयाज़




मसाफ़-ए-जीस्त में वो रन पड़ा है आज के दिन
न मैं तुम्हारी तमन्ना हूँ और न तुम मेरे

महमूद अयाज़




मैं आ गया हूँ वहाँ तक तिरी तमन्ना में
जहाँ से कोई भी इम्कान-ए-वापसी न रहे

महमूद गज़नी




बाक़ी अभी है तर्क-ए-तमन्ना की आरज़ू
क्यूँ-कर कहूँ कि कोई तमन्ना नहीं मुझे

मुज़फ़्फ़र अली असीर




आरज़ू है कि तू यहाँ आए
और फिर उम्र भर न जाए कहीं

नासिर काज़मी




कटती है आरज़ू के सहारे पे ज़िंदगी
कैसे कहूँ किसी की तमन्ना न चाहिए

शाद आरफ़ी




तमन्नाओं में उलझाया गया हूँ
खिलौने दे के बहलाया गया हूँ

शाद अज़ीमाबादी