जीने वालों से कहो कोई तमन्ना ढूँडें
हम तो आसूदा-ए-मंज़िल हैं हमारा क्या है
महमूद अयाज़
मसाफ़-ए-जीस्त में वो रन पड़ा है आज के दिन
न मैं तुम्हारी तमन्ना हूँ और न तुम मेरे
महमूद अयाज़
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मैं आ गया हूँ वहाँ तक तिरी तमन्ना में
जहाँ से कोई भी इम्कान-ए-वापसी न रहे
महमूद गज़नी
बाक़ी अभी है तर्क-ए-तमन्ना की आरज़ू
क्यूँ-कर कहूँ कि कोई तमन्ना नहीं मुझे
मुज़फ़्फ़र अली असीर
आरज़ू है कि तू यहाँ आए
और फिर उम्र भर न जाए कहीं
नासिर काज़मी
कटती है आरज़ू के सहारे पे ज़िंदगी
कैसे कहूँ किसी की तमन्ना न चाहिए
शाद आरफ़ी
तमन्नाओं में उलझाया गया हूँ
खिलौने दे के बहलाया गया हूँ
शाद अज़ीमाबादी