तमन्नाओं में उलझाया गया हूँ
खिलौने दे के बहलाया गया हूँ
हूँ इस कूचे के हर ज़र्रे से आगाह
इधर से मुद्दतों आया गया हूँ
नहीं उठते क़दम क्यूँ जानिब-ए-दैर
किसी मस्जिद में बहकाया गया हूँ
दिल-ए-मुज़्तर से पूछ ऐ रौनक़-ए-बज़्म
मैं ख़ुद आया नहीं लाया गया हूँ
सवेरा है बहुत ऐ शोर-ए-महशर
अभी बेकार उठवाया गया हूँ
सताया आ के पहरों आरज़ू ने
जो दम भर आप में पाया गया हूँ
न था मैं मो'तक़िद एजाज़-ए-मय का
बड़ी मुश्किल से मनवाया गया हूँ
लहद में क्यूँ न जाऊँ मुँह छुपा कर
भरी महफ़िल से उठवाया गया हूँ
कुजा मैं और कुजा ऐ 'शाद' दुनिया
कहाँ से किस जगह लाया गया हूँ
ग़ज़ल
तमन्नाओं में उलझाया गया हूँ
शाद अज़ीमाबादी