हम से मिलते थे सितारे आप के
फिर भी खो बैठे सहारे आप के
कैसा जादू है समझ आता नहीं
नींद मेरी ख़्वाब सारे आप के
हम से शायद मो'तबर ठहरी सबा
जिस ने ये गेसू सँवारे आप के
आप की नज़र-ए-करम के मुंतज़िर
कब से बैठे हैं द्वारे आप के
कोई उस की आँख को भाएगा क्यूँ
जिस ने देखे हों नज़ारे आप के
बिन तिरे साँसें भी अब चलती नहीं
हर घड़ी चाहें, इशारे आप के
मुस्कुरा कर देखिए तो एक बार
कहकशाँ, ये चाँद तारे आप के
झूट है 'मुफ़्ती' भुला बैठे हो सब
क्यूँ थे पलकों पर सितारे आप के
ग़ज़ल
हम से मिलते थे सितारे आप के
इब्न-ए-मुफ़्ती