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प्रेरक शायरी | शाही शायरी

प्रेरक

112 शेर

सियाह रात नहीं लेती नाम ढलने का
यही तो वक़्त है सूरज तिरे निकलने का

शहरयार




कपड़े सफ़ेद धो के जो पहने तो क्या हुआ
धोना वही जो दिल की सियाही को धोइए

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम




किसू मशरब में और मज़हब में
ज़ुल्म ऐ मेहरबाँ नहीं है दुरुस्त

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम




चाहिए ख़ुद पे यक़ीन-ए-कामिल
हौसला किस का बढ़ाता है कोई

शकील बदायुनी




ऐ 'ज़ौक़' तकल्लुफ़ में है तकलीफ़ सरासर
आराम में है वो जो तकल्लुफ़ नहीं करता

save trouble, in formality, zauq nothing else can be
at ease he then remains he who, eschews formality

शेख़ इब्राहीम ज़ौक़




तमीज़-ए-ख़्वाब-ओ-हक़ीक़त है शर्त-ए-बेदारी
ख़याल-ए-अज़्मत-ए-माज़ी को छोड़ हाल को देख

सिकंदर अली वज्द




किसी को बे-सबब शोहरत नहीं मिलती है ऐ 'वाहिद'
उन्हीं के नाम हैं दुनिया में जिन के काम अच्छे हैं

वाहिद प्रेमी