एक ऐसी भी तजल्ली आज मय-ख़ाने में है
लुत्फ़ पीने में नहीं है बल्कि खो जाने में है
असग़र गोंडवी
रिंद जो ज़र्फ़ उठा लें वही साग़र बन जाए
जिस जगह बैठ के पी लें वही मय-ख़ाना बने
असग़र गोंडवी
छोड़ कर कूचा-ए-मय-ख़ाना तरफ़ मस्जिद के
मैं तो दीवाना नहीं हूँ जो चलूँ होश की राह
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
न तुम होश में हो न हम होश में हैं
चलो मय-कदे में वहीं बात होगी
neither are you in your senses nor am I in mine
let us now go to the tavern and talk while we have wine
बशीर बद्र
प्यार ही प्यार है सब लोग बराबर हैं यहाँ
मय-कदे में कोई छोटा न बड़ा जाम उठा
बशीर बद्र
वाइज़ ओ मोहतसिब का जमघट है
मै-कदा अब तो मै-कदा न रहा
बेखुद बदायुनी
रूह किस मस्त की प्यासी गई मय-ख़ाने से
मय उड़ी जाती है साक़ी तिरे पैमाने से
दाग़ देहलवी