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Maikada शायरी | शाही शायरी

Maikada

41 शेर

अब तो उतनी भी मयस्सर नहीं मय-ख़ाने में
जितनी हम छोड़ दिया करते थे पैमाने में

the tavern does not even give that much wine to me
that I was wont to waste in the goblet casually

दिवाकर राही




मय-ख़ाना सलामत है तो हम सुर्ख़ी-ए-मय से
तज़ईन-ए-दर-ओ-बाम-ए-हरम करते रहेंगे

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़




आए थे हँसते खेलते मय-ख़ाने में 'फ़िराक़'
जब पी चुके शराब तो संजीदा हो गए

we came to the tavern all gay and frolicsome
now having drunk the wine, somber have become

फ़िराक़ गोरखपुरी




जा सके न मस्जिद तक जम्अ' थे बहुत ज़ाहिद
मय-कदे में आ बैठे जब न रास्ता पाया

हबीब मूसवी




ख़ुदा करे कहीं मय-ख़ाने की तरफ़ न मुड़े
वो मोहतसिब की सवारी फ़रेब-ए-राह रुकी

हबीब मूसवी




मय-कदा है शैख़ साहब ये कोई मस्जिद नहीं
आप शायद आए हैं रिंदों के बहकाए हुए

हबीब मूसवी




मय-कदे को जा के देख आऊँ ये हसरत दिल में है
ज़ाहिद उस मिट्टी की उल्फ़त मेरी आब-ओ-गिल में है

हबीब मूसवी