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Maikada शायरी | शाही शायरी

Maikada

41 शेर

मय-कदे की तरफ़ चला ज़ाहिद
सुब्ह का भूला शाम घर आया

the priest now proceeds towards the tavern's door
to the true path returns he who strayed before

कलीम आजिज़




ज़िंदगी नाम इसी मौज-ए-मय-ए-नाब का है
मय-कदे से जो उठे दार-ओ-रसन तक पहुँचे

कमाल अहमद सिद्दीक़ी




गुज़रे हैं मय-कदे से जो तौबा के ब'अद हम
कुछ दूर आदतन भी क़दम डगमगाए हैं

ख़ुमार बाराबंकवी




मय-कदा जल रहा है तेरे बग़ैर
दिल में छाले हैं आबगीने के

लाला माधव राम जौहर




दूर से आए थे साक़ी सुन के मय-ख़ाने को हम
बस तरसते ही चले अफ़्सोस पैमाने को हम

नज़ीर अकबराबादी




सरक कर आ गईं ज़ुल्फ़ें जो इन मख़मूर आँखों तक
मैं ये समझा कि मय-ख़ाने पे बदली छाई जाती है

नुशूर वाहिदी




निकल कर दैर-ओ-काबा से अगर मिलता न मय-ख़ाना
तो ठुकराए हुए इंसाँ ख़ुदा जाने कहाँ जाते

if on leaving temple,mosque no tavern were be found
what refuge would outcasts find? this only God would know

क़तील शिफ़ाई