अख़ीर वक़्त है किस मुँह से जाऊँ मस्जिद को
तमाम उम्र तो गुज़री शराब-ख़ाने में
हफ़ीज़ जौनपुरी
मय-ख़ाने की सम्त न देखो
जाने कौन नज़र आ जाए
हफ़ीज़ मेरठी
मय-कदे में नश्शा की ऐनक दिखाती है मुझे
आसमाँ मस्त ओ ज़मीं मस्त ओ दर-ओ-दीवार मस्त
हैदर अली आतिश
चश्म-ए-साक़ी मुझे हर गाम पे याद आती है
रास्ता भूल न जाऊँ कहीं मयख़ाने का
इक़बाल सफ़ी पूरी
कोई समझाए कि क्या रंग है मयख़ाने का
आँख साक़ी की उठे नाम हो पैमाने का
इक़बाल सफ़ी पूरी
बहार आते ही टकराने लगे क्यूँ साग़र ओ मीना
बता ऐ पीर-ए-मय-ख़ाना ये मय-ख़ानों पे क्या गुज़री
जगन्नाथ आज़ाद
ये मय-ख़ाना है बज़्म-ए-जम नहीं है
यहाँ कोई किसी से कम नहीं है
जिगर मुरादाबादी