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क्यूँ मैं अब क़ाबिल-ए-जफ़ा न रहा | शाही शायरी
kyun main ab qabil-e-jafa na raha

ग़ज़ल

क्यूँ मैं अब क़ाबिल-ए-जफ़ा न रहा

बेखुद बदायुनी

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क्यूँ मैं अब क़ाबिल-ए-जफ़ा न रहा
क्या हुआ कहिए मुझ में क्या न रहा

उन की महफ़िल में उस के चर्चे हैं
मुझ से अच्छा मिरा फ़साना रहा

वाइज़ ओ मोहतसिब का जमघट है
मै-कदा अब तो मै-कदा न रहा

उफ़-रे ना-आश्नाइयाँ उस की
चार दिन भी तो आश्ना न रहा

लाख पर्दे में कोई क्यूँ न छुपे
राज़-ए-उल्फ़त तो अब छुपा न रहा

इतनी मायूसियाँ भी क्या 'बेख़ुद'
क्या ख़ुदा का भी आसरा न रहा