क्यूँ मैं अब क़ाबिल-ए-जफ़ा न रहा
क्या हुआ कहिए मुझ में क्या न रहा
उन की महफ़िल में उस के चर्चे हैं
मुझ से अच्छा मिरा फ़साना रहा
वाइज़ ओ मोहतसिब का जमघट है
मै-कदा अब तो मै-कदा न रहा
उफ़-रे ना-आश्नाइयाँ उस की
चार दिन भी तो आश्ना न रहा
लाख पर्दे में कोई क्यूँ न छुपे
राज़-ए-उल्फ़त तो अब छुपा न रहा
इतनी मायूसियाँ भी क्या 'बेख़ुद'
क्या ख़ुदा का भी आसरा न रहा
ग़ज़ल
क्यूँ मैं अब क़ाबिल-ए-जफ़ा न रहा
बेखुद बदायुनी