कोई दिन आगे भी ज़ाहिद अजब ज़माना था
हर इक मोहल्ले की मस्जिद शराब-ख़ाना था
क़ाएम चाँदपुरी
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मय-ख़ाने में क्यूँ याद-ए-ख़ुदा होती है अक्सर
मस्जिद में तो ज़िक्र-ए-मय-ओ-मीना नहीं होता
रियाज़ ख़ैराबादी
मय-ख़ाने में मज़ार हमारा अगर बना
दुनिया यही कहेगी कि जन्नत में घर बना
रियाज़ ख़ैराबादी
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शैख़ उस की चश्म के गोशे से गोशे हो कहीं
उस तरफ़ मत जाओ नादाँ राह मय-ख़ाने की है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
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दुख़्त-ए-रज़ और तू कहाँ मिलती
खींच लाए शराब-ख़ाने से
शरफ़ मुजद्दिदी
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'ज़ौक़' जो मदरसे के बिगड़े हुए हैं मुल्ला
उन को मय-ख़ाने में ले आओ सँवर जाएँगे
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़