ढूँड लाया हूँ ख़ुशी की छाँव जिस के वास्ते
एक ग़म से भी उसे दो-चार करना है मुझे
ग़ुलाम हुसैन साजिद
फिर दे के ख़ुशी हम उसे नाशाद करें क्यूँ
ग़म ही से तबीअत है अगर शाद किसी की
हफ़ीज़ जालंधरी
अगर तेरी ख़ुशी है तेरे बंदों की मसर्रत में
तो ऐ मेरे ख़ुदा तेरी ख़ुशी से कुछ नहीं होता
हरी चंद अख़्तर
मसर्रत ज़िंदगी का दूसरा नाम
मसर्रत की तमन्ना मुस्तक़िल ग़म
जिगर मुरादाबादी
ग़म है न अब ख़ुशी है न उम्मीद है न यास
सब से नजात पाए ज़माने गुज़र गए
ख़ुमार बाराबंकवी
अहबाब को दे रहा हूँ धोका
चेहरे पे ख़ुशी सजा रहा हूँ
क़तील शिफ़ाई
ग़म और ख़ुशी में फ़र्क़ न महसूस हो जहाँ
मैं दिल को उस मक़ाम पे लाता चला गया
साहिर लुधियानवी