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वो चुप था दीदा-ए-नम बोलते थे | शाही शायरी
wo chup tha dida-e-nam bolte the

ग़ज़ल

वो चुप था दीदा-ए-नम बोलते थे

भारत भूषण पन्त

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वो चुप था दीदा-ए-नम बोलते थे
कि उस के चेहरे से ग़म बोलते थे

सबब ख़ामोशियों का मैं नहीं था
मिरे घर में सभी कम बोलते थे

यही जो शहर का है आज मरकज़
यहाँ सन्नाटे पैहम बोलते थे

तरसते हैं उसी तन्हाई को हम
कोई सुनता था और हम बोलते थे

कोई भी घर में जब होता नहीं था
दर-ओ-दीवार बाहम बोलते थे

उन्हीं से बोलना सीखा था हम ने
वही जो बज़्म में कम बोलते थे