मुझे ख़बर थी मिरा इंतिज़ार घर में रहा
ये हादसा था कि मैं उम्र भर सफ़र में रहा
साक़ी फ़ारुक़ी
आधी से ज़ियादा शब-ए-ग़म काट चुका हूँ
अब भी अगर आ जाओ तो ये रात बड़ी है
साक़िब लखनवी
तेरे वादे को कभी झूट नहीं समझूँगा
आज की रात भी दरवाज़ा खुला रक्खूँगा
शहरयार
इतना मैं इंतिज़ार किया उस की राह में
जो रफ़्ता रफ़्ता दिल मिरा बीमार हो गया
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
मुद्दत हुई पलक से पलक आश्ना नहीं
क्या इस से अब ज़ियादा करे इंतिज़ार चश्म
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
मुद्दत से ख़्वाब में भी नहीं नींद का ख़याल
हैरत में हूँ ये किस का मुझे इंतिज़ार है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
क़ुर्बान सौ तरह से किया तुझ पर आप को
तू भी कभू तो जान न आया बजाए ईद
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम