खुला है दर प तिरा इंतिज़ार जाता रहा
ख़ुलूस तो है मगर ए'तिबार जाता रहा
जावेद अख़्तर
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जिसे न आने की क़स्में मैं दे के आया हूँ
उसी के क़दमों की आहट का इंतिज़ार भी है
जावेद नसीमी
कभी इस राह से गुज़रे वो शायद
गली के मोड़ पर तन्हा खड़ा हूँ
जुनैद हज़ीं लारी
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कौन आएगा यहाँ कोई न आया होगा
मेरा दरवाज़ा हवाओं ने हिलाया होगा
कैफ़ भोपाली
तेरी आमद की मुंतज़िर आँखें
बुझ गईं ख़ाक हो गए रस्ते
खलील तनवीर
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अब इन हुदूद में लाया है इंतिज़ार मुझे
वो आ भी जाएँ तो आए न ऐतबार मुझे
ख़ुमार बाराबंकवी
ओ जाने वाले आ कि तिरे इंतिज़ार में
रस्ते को घर बनाए ज़माने गुज़र गए
ख़ुमार बाराबंकवी
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