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होवे वो शोख़-चश्म अगर मुझ से चार चश्म | शाही शायरी
howe wo shoKH-chashm agar mujhse chaar chashm

ग़ज़ल

होवे वो शोख़-चश्म अगर मुझ से चार चश्म

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

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होवे वो शोख़-चश्म अगर मुझ से चार चश्म
क़ुर्बां करूँ मैं चश्म पर उस के हज़ार चश्म

मुद्दत हुई पलक से पलक आश्ना नहीं
क्या इस से अब ज़ियादा करे इंतिज़ार चश्म

जिस रंग से हो अब्र सफ़ेद ओ सियाह ओ सुर्ख़
इस तरह कर रहे हैं तुम्हारे बहार चश्म

सोते से नाम सुन के मिरा यार जाग उठा
बख़्तों के खुल गए मिरे बे-इख़्तियार चश्म

जागे हो रात या ये नशे का उतार है
जो सुब्ह कर रहे हैं तुम्हारे ख़ुमार चश्म

ज़ालिम ख़ुदा के वास्ते 'हातिम' को मुँह दिखा
मुद्दत से देखने के हैं उम्मीद-वार चश्म