बे-ख़ुदी ले गई कहाँ हम को
देर से इंतिज़ार है अपना
मीर तक़ी मीर
नहीं है देर यहाँ अपनी जान जाने में
तुम्हारे आने का बस इंतिज़ार बाक़ी है
मिर्ज़ा आसमान जाह अंजुम
चमन में शब को घिरा अब्र-ए-नौ-बहार रहा
हुज़ूर आप का क्या क्या न इंतिज़ार रहा
मिर्ज़ा शौक़ लखनवी
तुम आ गए हो तो मुझ को ज़रा सँभलने दो
अभी तो नश्शा सा आँखों में इंतिज़ार का है
मोहम्मद अहमद रम्ज़
तुम आ गए हो तुम मुझ को ज़रा सँभलने दो
अभी तो नश्शा सा आँखों में इंतिज़ार का है
मोहम्मद अहमद रम्ज़
देखा न होगा तू ने मगर इंतिज़ार में
चलते हुए समय को ठहरते हुए भी देख
मोहम्मद अल्वी
है किस का इंतिज़ार कि ख़्वाब-ए-अदम से भी
हर बार चौंक पड़ते हैं आवाज़-ए-पा के साथ
मोमिन ख़ाँ मोमिन