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हया शायरी | शाही शायरी

हया

10 शेर

हया से सर झुका लेना अदा से मुस्कुरा देना
हसीनों को भी कितना सहल है बिजली गिरा देना

how easy is for these maidens to make the lightening fall

अकबर इलाहाबादी


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इश्वा भी है शोख़ी भी तबस्सुम भी हया भी
ज़ालिम में और इक बात है इस सब के सिवा भी

अकबर इलाहाबादी




उन रस भरी आँखों में हया खेल रही है
दो ज़हर के प्यालों में क़ज़ा खेल रही है

अख़्तर शीरानी




हया नहीं है ज़माने की आँख में बाक़ी
ख़ुदा करे कि जवानी तिरी रहे बे-दाग़

अल्लामा इक़बाल




जवाँ होने लगे जब वो तो हम से कर लिया पर्दा
हया यक-लख़्त आई और शबाब आहिस्ता आहिस्ता

as she came of age she started to be veiled from me
shyness came to her at once, beauty then slowly

अमीर मीनाई




कैसी हया कहाँ की वफ़ा पास-ए-ख़ल्क़ क्या
हाँ ये सही कि आप को आना यहाँ न था

अनवर देहलवी




कभी हया उन्हें आई कभी ग़ुरूर आया
हमारे काम में सौ सौ तरह फ़ुतूर आया

बेखुद बदायुनी