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कभी हया उन्हें आई कभी ग़ुरूर आया | शाही शायरी
kabhi haya unhen aai kabhi ghurur aaya

ग़ज़ल

कभी हया उन्हें आई कभी ग़ुरूर आया

बेखुद बदायुनी

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कभी हया उन्हें आई कभी ग़ुरूर आया
हमारे काम में सौ सौ तरह फ़ुतूर आया

हज़ार शुक्र वो आशिक़ तो जानते हैं मुझे
जो कहते हैं कि तिरा दिल कहीं ज़रूर आया

जो बा-हवास था देखा उसी ने जल्वा-ए-यार
जिसे सुरूर न आया उसे सुरूर आया

ख़ुदा वो दिन भी दिखाए कि मैं कहूँ 'बेख़ुद'
जनाब-ए-'दाग़' से मिलने मैं राम-पूर आया