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Gunah शायरी | शाही शायरी

Gunah

29 शेर

वो कौन हैं जिन्हें तौबा की मिल गई फ़ुर्सत
हमें गुनाह भी करने को ज़िंदगी कम है

who are those that seem to find the time for to repent
for us this life is too short to sin to heart's content

आनंद नारायण मुल्ला




'आरज़ू' जाम लो झिजक कैसी
पी लो और दहशत-ए-गुनाह गई

आरज़ू लखनवी




मोहब्बत नेक-ओ-बद को सोचने दे ग़ैर-मुमकिन है
बढ़ी जब बे-ख़ुदी फिर कौन डरता है गुनाहों से

आरज़ू लखनवी




गुनह-गारों में शामिल हैं गुनाहों से नहीं वाक़िफ़
सज़ा को जानते हैं हम ख़ुदा जाने ख़ता क्या है

चकबस्त ब्रिज नारायण




इक फ़ुर्सत-ए-गुनाह मिली वो भी चार दिन
देखे हैं हम ने हौसले पर्वरदिगार के

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़




कोई समझे तो एक बात कहूँ
इश्क़ तौफ़ीक़ है गुनाह नहीं

if someone were to listen, one thing I will opine
Love is not a crime forsooth it is grace divine

फ़िराक़ गोरखपुरी




क्या कीजिए कशिश है कुछ ऐसी गुनाह में
मैं वर्ना यूँ फ़रेब में आता बहार के

गोपाल मित्तल