गर्मी बहुत है आज खुला रख मकान को
उस की गली से रात को पुर्वाई आएगी
ख़लील रामपुरी
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गर्मी बहुत है आज खुला रख मकान को
उस की गली से रात को पुर्वाई आएगी
ख़लील रामपुरी
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गर्मी में तेरे कूचा-नशीनों के वास्ते
पंखे हैं क़ुदसियों के परों के बहिश्त में
मुनीर शिकोहाबादी
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सूरज सर पे आ पहुँचा
गर्मी है या रोज़-ए-जज़ा
नासिर काज़मी
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ये सुब्ह की सफ़ेदियाँ ये दोपहर की ज़र्दियाँ
अब आईने में देखता हूँ मैं कहाँ चला गया
नासिर काज़मी
आते ही जो तुम मेरे गले लग गए वल्लाह
उस वक़्त तो इस गर्मी ने सब मात की गर्मी
नज़ीर अकबराबादी
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गर्मी सी ये गर्मी है
माँग रहे हैं लोग पनाह
उबैद सिद्दीक़ी
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