आँखों के आइनों में तवानाई आएगी
देखेगा सब्ज़ खेत तो बीनाई आएगी
पाएगा ख़ुशबुओं से ज़मीनों के भेद भी
इक रोज़ तेरे काम शनासाई आएगी
पेड़ों की छाँव छोड़ किसी आब-ए-जू पे बैठ
तुझ में नहीं तो अक्स में रा'नाई आएगी
दुनिया की सैर कर के निखर जाएगा ख़याल
ताज़ा हवा लगेगी तो दानाई आएगी
हर नक़्श आब-ओ-ख़ाक का दिल में उतार ले
फ़नकार है तो ताक़त-ए-गोयाई आएगी
शाइर की तरह डोल रहा है ख़लाओं में
लोगों में बैठ अंजुमन-आराई आएगी
अंधों के इस नगर में दिए की मिसाल बन
सहरा में गुल खुलेगा तो यकताई आएगी
शफ़्फ़ाफ़ पानियों की तरह ज़िंदगी गुज़ार
सूरज की तरह तुझ में तवानाई आएगी
घर में दिया जला कि लगे बोलता हुआ
दीवार-ओ-दर पे ज़ीनत-ओ-ज़ेबाई आएगी
साया भी तेरा तुझ को कहीं छोड़ जाएगा
आई भी तेरे काम तो तन्हाई आएगी
गर्मी बहुत है आज खुला रख मकान को
उस की गली से रात को पुर्वाई आएगी
काफ़ी है जो ग़ज़ल के लिए कह लिया 'ख़लील'
आगे क़दम रखेगा तो गहराई आएगी
ग़ज़ल
आँखों के आइनों में तवानाई आएगी
ख़लील रामपुरी