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फिल्मी शायरी | शाही शायरी

फिल्मी

66 शेर

और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा

sorrows other than love's longing does this life provide
comforts other than a lover's union too abide

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़




वो बात सारे फ़साने में जिस का ज़िक्र न था
वो बात उन को बहुत ना-गवार गुज़री है

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़




बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
तुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं

फ़िराक़ गोरखपुरी




न गोर-ए-सिकंदर न है क़ब्र-ए-दारा
मिटे नामियों के निशाँ कैसे कैसे

हैदर अली आतिश




न तो कुछ फ़िक्र में हासिल है न तदबीर में है
वही होता है जो इंसान की तक़दीर में है

there is naught from worrying, nor from planning gained
for everything that happens is by fate ordained

हैरत इलाहाबादी




न वो इक़रार करता है न वो इंकार करता है
हमें फिर भी गुमाँ है वो हमीं से प्यार करता है

हसन रिज़वी




चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है
हम को अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है

हसरत मोहानी