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फिल्मी शायरी | शाही शायरी

फिल्मी

66 शेर

मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर
लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया

मजरूह सुल्तानपुरी




आप की याद आती रही रात भर
चश्म-ए-नम मुस्कुराती रही रात भर

मख़दूम मुहिउद्दीन




अब तो जाते हैं बुत-कदे से 'मीर'
फिर मिलेंगे अगर ख़ुदा लाया

मीर तक़ी मीर




शह-ज़ोर अपने ज़ोर में गिरता है मिस्ल-ए-बर्क़
वो तिफ़्ल क्या गिरेगा जो घुटनों के बल चले

मिर्ज़ा अज़ीम बेग 'अज़ीम'




ऐ सनम वस्ल की तदबीरों से क्या होता है
वही होता है जो मंज़ूर-ए-ख़ुदा होता है

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़




क़ैस जंगल में अकेला है मुझे जाने दो
ख़ूब गुज़रेगी जो मिल बैठेंगे दीवाने दो

मियाँ दाद ख़ां सय्याह




वो जो हम में तुम में क़रार था तुम्हें याद हो कि न याद हो
वही यानी वादा निबाह का तुम्हें याद हो कि न याद हो

the love that 'tween us used to be, you may, may not recall
those promises of constancy, you may, may not recall

मोमिन ख़ाँ मोमिन