आँखें न जीने देंगी तिरी बे-वफ़ा मुझे
क्यूँ खिड़कियों से झाँक रही है क़ज़ा मुझे
इमदाद अली बहर
तेरी जानिब से मुझ पे क्या न हुआ
ख़ैर गुज़री कि तू ख़ुदा न हुआ
इम्दाद इमाम असर
अजीब लुत्फ़ कुछ आपस के छेड़-छाड़ में है
कहाँ मिलाप में वो बात जो बिगाड़ में है
इंशा अल्लाह ख़ान
जज़्बा-ए-इश्क़ सलामत है तो इंशा-अल्लाह
कच्चे धागे से चले आएँगे सरकार बंधे
इंशा अल्लाह ख़ान
कमर बाँधे हुए चलने को याँ सब यार बैठे हैं
बहुत आगे गए बाक़ी जो हैं तय्यार बैठे हैं
इंशा अल्लाह ख़ान
न छेड़ ऐ निकहत-ए-बाद-ए-बहारी राह लग अपनी
तुझे अटखेलियाँ सूझी हैं हम बे-ज़ार बैठे हैं
इंशा अल्लाह ख़ान
सूरज हूँ ज़िंदगी की रमक़ छोड़ जाऊँगा
मैं डूब भी गया तो शफ़क़ छोड़ जाऊँगा
इक़बाल साजिद