तुम्हारी याद में दुनिया को हूँ भुलाए हुए
तुम्हारे दर्द को सीने से हूँ लगाए हुए
असर सहबाई
यारो नए मौसम ने ये एहसान किए हैं
अब याद मुझे दर्द पुराने नहीं आते
बशीर बद्र
अगर दर्द-ए-मोहब्बत से न इंसाँ आश्ना होता
न कुछ मरने का ग़म होता न जीने का मज़ा होता
चकबस्त ब्रिज नारायण
कब ठहरेगा दर्द ऐ दिल कब रात बसर होगी
सुनते थे वो आएँगे सुनते थे सहर होगी
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
मिन्नत-ए-चारा-साज़ कौन करे
दर्द जब जाँ-नवाज़ हो जाए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
तेज़ है आज दर्द-ए-दिल साक़ी
तल्ख़ी-ए-मय को तेज़-तर कर दे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ज़िंदगी क्या किसी मुफ़लिस की क़बा है जिस में
हर घड़ी दर्द के पैवंद लगे जाते हैं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़