तुम्हारी याद में दुनिया को हूँ भुलाए हुए
तुम्हारे दर्द को सीने से हूँ लगाए हुए
अजीब सोज़ से लबरेज़ हैं मिरे नग़्मे
कि साज़-ए-दिल है मोहब्बत की चोट खाए हुए
जो तुझ से कुछ भी न मिलने पे ख़ुश हैं ऐ साक़ी
कुछ ऐसे रिंद भी हैं मय-कदे में आए हुए
तुम्हारे एक तबस्सुम ने दिल को लूट लिया
रहे लबों पे ही शिकवे लबों पे आए हुए
'असर' भी राह-रव-ए-दश्त-ए-ज़िंदगानी है
पहाड़ ग़म का दिल-ए-ज़ार पर उठाए हुए
ग़ज़ल
तुम्हारी याद में दुनिया को हूँ भुलाए हुए
असर सहबाई