हर हक़ीक़त मजाज़ हो जाए
काफ़िरों की नमाज़ हो जाए
दिल रहीन-ए-नियाज़ हो जाए
बेकसी कारसाज़ हो जाए
मिन्नत-ए-चारा-साज़ कौन करे
दर्द जब जाँ-नवाज़ हो जाए
इश्क़ दिल में रहे तो रुस्वा हो
लब पे आए तो राज़ हो जाए
लुत्फ़ का इंतिज़ार करता हूँ
जौर ता हद्द-ए-नाज़ हो जाए
उम्र बे-सूद कट रही है 'फ़ैज़'
काश इफ़शा-ए-राज़ हो जाए
ग़ज़ल
हर हक़ीक़त मजाज़ हो जाए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़