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औरत शायरी | शाही शायरी

औरत

43 शेर

दुआ को हात उठाते हुए लरज़ता हूँ
कभी दुआ नहीं माँगी थी माँ के होते हुए

इफ़्तिख़ार आरिफ़




जवान गेहूँ के खेतों को देख कर रो दें
वो लड़कियाँ कि जिन्हें भूल बैठीं माएँ भी

किश्वर नाहीद




शो-केस में रक्खा हुआ औरत का जो बुत है
गूँगा ही सही फिर भी दिल-आवेज़ बहुत है

कृष्ण अदीब




ये औरतों में तवाइफ़ तो ढूँड लेती हैं
तवाइफ़ों में इन्हें औरतें नहीं मिलतीं

मीना नक़वी




चलती फिरती हुई आँखों से अज़ाँ देखी है
मैं ने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है

मुनव्वर राना




घर में रहते हुए ग़ैरों की तरह होती हैं
लड़कियाँ धान के पौदों की तरह होती हैं

मुनव्वर राना




कल अपने-आप को देखा था माँ की आँखों में
ये आईना हमें बूढ़ा नहीं बताता है

मुनव्वर राना