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घर में रहते हुए ग़ैरों की तरह होती हैं | शाही शायरी
ghar mein rahte hue ghairon ki tarah hoti hain

ग़ज़ल

घर में रहते हुए ग़ैरों की तरह होती हैं

मुनव्वर राना

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घर में रहते हुए ग़ैरों की तरह होती हैं
लड़कियाँ धान के पौदों की तरह होती हैं

उड़ के इक रोज़ बहुत दूर चली जाती हैं
घर की शाख़ों पे ये चिड़ियों की तरह होती हैं

सहमी सहमी हुई रहती हैं मकान-ए-दिल में
आरज़ूएँ भी ग़रीबों की तरह होती हैं

टूट कर ये भी बिखर जाती हैं इक लम्हे में
कुछ उमीदें भी घरोंदों की तरह होती हैं

आप को देख के जिस वक़्त पलटती है नज़र
मेरी आँखें मिरी आँखों की तरह होती हैं