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तुम्हारी याद में हम जश्न-ए-ग़म मनाएँ भी | शाही शायरी
tumhaari yaad mein hum jashn-e-gham manaen bhi

ग़ज़ल

तुम्हारी याद में हम जश्न-ए-ग़म मनाएँ भी

किश्वर नाहीद

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तुम्हारी याद में हम जश्न-ए-ग़म मनाएँ भी
किसी तरह से मगर तुम को याद आएँ भी

छलक ही पड़ते हैं ख़ुद ही गुलाब आँखों के
वो पास आएँ तो ये दास्ताँ सुनाईं भी

हर एक लम्हा यही बेकली सी है दिल में
कि उन को याद करें उन को भूल जाएँ भी

जवान गेहूँ के खेतों को देख कर रो दें
वो लड़कियाँ कि जिन्हें भूल बैठीं माएँ भी

तमाम उम्र यूँही रतजगों से क्या हासिल
उन्हें भुलाएँ ज़रा नींद को बुलाएँ भी

सुकून मिलता है जलती हुई दोपहरों में
बनी हैं मरहम-ए-दिल धूप की शुआएँ भी

रवा-रवी में है हर एक सोहबत-ए-याराँ
मिलें सकूँ से तो क़िस्से तिरे सुनाएँ भी

वो जिन के ज़िक्र से 'नाहीद' ज़िंदगी है हसीं
वो लोग आएँ तो आँखों पे हम बिठाएँ भी