बताऊँ क्या तुझे ऐ हम-नशीं किस से मोहब्बत है
मैं जिस दुनिया में रहता हूँ वो इस दुनिया की औरत है
असरार-उल-हक़ मजाज़
तिरे माथे पे ये आँचल तो बहुत ही ख़ूब है लेकिन
तू इस आँचल से इक परचम बना लेती तो अच्छा था
असरार-उल-हक़ मजाज़
है कामयाबी-ए-मर्दां में हाथ औरत का
मगर तू एक ही औरत पे इंहिसार न कर
अज़ीज़ फ़ैसल
एक औरत से वफ़ा करने का ये तोहफ़ा मिला
जाने कितनी औरतों की बद-दुआएँ साथ हैं
बशीर बद्र
ख़ुद पे ये ज़ुल्म गवारा नहीं होगा हम से
हम तो शो'लों से न गुज़़रेंगे न सीता समझें
बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन
औरतें काम पे निकली थीं बदन घर रख कर
जिस्म ख़ाली जो नज़र आए तो मर्द आ बैठे
फ़रहत एहसास
क़िस्सा-ए-आदम में एक और ही वहदत पैदा कर ली है
मैं ने अपने अंदर अपनी औरत पैदा कर ली है
फ़रहत एहसास