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गरचे नेज़ों पे सर है | शाही शायरी
garche nezon pe sar hai

ग़ज़ल

गरचे नेज़ों पे सर है

अब्दुस्समद ’तपिश’

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गरचे नेज़ों पे सर है
मौत तो वक़्त पर है

कौन पत्थर उठाए
ये शजर बे-समर है

घोंसला ज़िंदगी का
साँस की शाख़ पर है

कोई दुश्मन नहीं है
मुझ को अपना ही डर है

शक भी कीजे तो किस पर
वो बड़ा मो'तबर है

ज़द में आँधी के अक्सर
एक मेरा ही घर है

अपनी पहचान रखना
भीड़ हर मोड़ पर है

मेरे मौला 'तपिश' को
इश्क़-ए-ख़ैर-उल-बशर है