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अभी तक हौसला ठहरा हुआ है | शाही शायरी
abhi tak hausla Thahra hua hai

ग़ज़ल

अभी तक हौसला ठहरा हुआ है

अब्दुस्समद ’तपिश’

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अभी तक हौसला ठहरा हुआ है
नफ़स का सिलसिला ठहरा हुआ है

रगों पर आज भी है लर्ज़ा तारी
निगह में हादसा ठहरा हुआ है

फ़क़त क़ाबील ने बुनियाद डाली
अभी तक सिलसिला ठहरा हुआ है

बस इक तार-ए-नफ़स का टूटना है
यही इक हादसा ठहरा हुआ है

नज़र की चूक थी बस एक लम्हा
सदी का क़ाफ़िला ठहरा हुआ है

जहाँ तक पाँव मेरे जा सके हैं
वहीं तक रास्ता ठहरा हुआ है

वो हम से रूठ कर भी दूर कब हैं
दिलों का राब्ता ठहरा हुआ है

वही क़ातिल वही मुंसिफ़ बना है
उसी से फ़ैसला ठहरा हुआ है