ग़ुंचा को मैं ने चूमा लाया दहन को आगे
बोसा न मुझ को देवे वो नुक्ता-याब क्यूँकर
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
इतवार को आना तिरा मालूम कि इक उम्र
बे-पीर तिरे हम ने ही अतवार को देखा
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
जाँ-कनी पेशा हो जिस का वो लहक है तेरा
तुझ पे शीरीं है न 'ख़ुसरव' का न फ़रहाद का हक़
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
जो पूछा मैं ने दिल ज़ुल्फ़ों में जूड़े में कहाँ बाँधा
कहा जब चोर था अपना जहाँ बाँधा वहाँ बाँधा
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
कौन सानी शहर में इस मेरे मह-पारे की है
चाँद सी सूरत दुपट्टा सर पे यक-तारे का है
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
ख़ाक आब-ए-गिर्या से आतिश बुझे नाचार हम
जानिब-ए-कू-ए-बुताँ जूँ बाद-ए-सरसर जाएँगे
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
किस को उस का ग़म हो जिस दम ग़म से वो ज़ारी करे
हाँ मगर तेरा ही ग़म आशिक़ की ग़म-ख़्वारी करे
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी