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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

तू ने ये क्या ग़ज़ब किया मुझ को भी फ़ाश कर दिया
मैं ही तो एक राज़ था सीना-ए-काएनात में

अल्लामा इक़बाल




तू क़ादिर ओ आदिल है मगर तेरे जहाँ में
हैं तल्ख़ बहुत बंदा-ए-मज़दूर के औक़ात

अल्लामा इक़बाल




तू शाहीं है परवाज़ है काम तेरा
तिरे सामने आसमाँ और भी हैं

अल्लामा इक़बाल




उमीद-ए-हूर ने सब कुछ सिखा रक्खा है वाइज़ को
ये हज़रत देखने में सीधे-सादे भोले-भाले हैं

अल्लामा इक़बाल




उक़ाबी रूह जब बेदार होती है जवानों में
नज़र आती है उन को अपनी मंज़िल आसमानों में

अल्लामा इक़बाल




उरूज-ए-आदम-ए-ख़ाकी से अंजुम सहमे जाते हैं
कि ये टूटा हुआ तारा मह-ए-कामिल न बन जाए

अल्लामा इक़बाल




उसे सुब्ह-ए-अज़ल इंकार की जुरअत हुई क्यूँकर
मुझे मालूम क्या वो राज़-दाँ तेरा है या मेरा

अल्लामा इक़बाल