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अगर कज-रौ हैं अंजुम आसमाँ तेरा है या मेरा | शाही शायरी
agar kaj-rau hain anjum aasman tera hai ya mera

ग़ज़ल

अगर कज-रौ हैं अंजुम आसमाँ तेरा है या मेरा

अल्लामा इक़बाल

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अगर कज-रौ हैं अंजुम आसमाँ तेरा है या मेरा
मुझे फ़िक्र-ए-जहाँ क्यूँ हो जहाँ तेरा है या मेरा

अगर हंगामा-हा-ए-शौक़ से है ला-मकाँ ख़ाली
ख़ता किस की है या रब ला-मकाँ तेरा है या मेरा

उसे सुब्ह-ए-अज़ल इंकार की जुरअत हुई क्यूँकर
मुझे मालूम क्या वो राज़-दाँ तेरा है या मेरा

मोहम्मद भी तिरा जिबरील भी क़ुरआन भी तेरा
मगर ये हर्फ़-ए-शीरीं तर्जुमाँ तेरा है या मेरा

इसी कौकब की ताबानी से है तेरा जहाँ रौशन
ज़वाल-ए-आदम-ए-ख़ाकी ज़ियाँ तेरा है या मेरा