वो तो था आदमी की तरह 'ज़हीर'
उस का चेहरा फ़रिश्तों जैसा था
अली ज़हीर लखनवी
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ज़रा पर्दा हटा दो सामने से बिजलियाँ चमकें
मिरा दिल जल्वा-गाह-ए-तूर बन जाए तो अच्छा हो
अली ज़हीर लखनवी
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अदा-ए-इश्क़ हूँ पूरी अना के साथ हूँ मैं
ख़ुद अपने साथ हूँ यानी ख़ुदा के साथ हूँ मैं
अली ज़रयून
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अस्र के वक़्त मेरे पास न बैठ
मुझ पे इक साँवली का साया है
अली ज़रयून
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बात भी कीजिए देख भी लीजिए
देख भी लीजिए बात भी कीजिए
अली ज़रयून
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सुकूत-ए-शाम का हिस्सा तू मत बना मुझ को
मैं रंग हूँ सो किसी मौज में मिला मुझ को
अली ज़रयून
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दिल का छूना था कि जज़्बात हुए पत्थर के
ऐसा लगता है कि हम शहर-ए-तिलिस्मात में हैं
अली ज़ुबैर
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