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अदा-ए-इश्क़ हूँ पूरी अना के साथ हूँ मैं | शाही शायरी
ada-e-ishq hun puri ana ke sath hun main

ग़ज़ल

अदा-ए-इश्क़ हूँ पूरी अना के साथ हूँ मैं

अली ज़रयून

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अदा-ए-इश्क़ हूँ पूरी अना के साथ हूँ मैं
ख़ुद अपने साथ हूँ यानी ख़ुदा के साथ हूँ मैं

मुजावरान-ए-हवस तंग हैं कि यूँ कैसे
बग़ैर शर्म-ओ-हया भी हया के साथ हूँ मैं

सफ़र शुरूअ तो होने दे अपने साथ मिरा
तू ख़ुद कहेगा ये कैसी बला के साथ हूँ मैं

मैं छू गया तो तिरा रंग काट डालूँगा
सो अपने आप से तुझ को बचा के साथ हूँ मैं

दुरूद-बर-दिल-ए-वहशी सलाम-बर-तप-ए-इश्क़
ख़ुद अपनी हम्द ख़ुद अपनी सना के साथ हूँ मैं

यही तो फ़र्क़ है मेरे और उन के हल के बीच
शिकायतें हैं उन्हें और रज़ा के साथ हूँ मैं

मैं अव्वलीन की इज़्ज़त में आख़िरीन का नूर
वो इंतिहा हूँ कि हर इब्तिदा के साथ हूँ मैं

दिखाई दूँ भी तो कैसे सुनाई दूँ भी तो क्यूँ
वरा-ए-नक़्श-ओ-नवा हूँ फ़ना के साथ हूँ मैं

ब-हुक्म-ए-यार लवें क़ब्ज़ करने आती है
बुझा रही है? बुझाए हवा के साथ हूँ मैं

ये साबिरीन-ए-मोहब्बत ये काशिफ़ीन-ए-जुनूँ
इन्ही के संग इन्हीं औलिया के साथ हूँ मैं

किसी के साथ नहीं हूँ मगर जमाल-ए-इलाहा
तिरी क़िस्म तिरे हर मुब्तला के साथ हूँ मैं

ज़माने भर को पता है मैं किस तरीक़ पे हूँ
सभी को इल्म है किस दिल-रुबा के साथ हूँ मैं

मुनाफ़िक़ीन-ए-तसव्वुफ़ की मौत हूँ मैं 'अली'
हर इक असील हर इक बे-रिया के साथ हूँ मैं