ज़िंदा रहने की ये तरकीब निकाली मैं ने
अपने होने की ख़बर सब से छुपा ली मैं ने
जब ज़मीं रेत की मानिंद सरकती पाई
आसमाँ थाम लिया जान बचा ली मैं ने
अपने सूरज की तमाज़त का भरम रखने को
नर्म छाँव में कड़ी धूप मिला ली मैं ने
मरहला कोई जुदाई का जो दरपेश हुआ
तो तबस्सुम की रिदा ग़म को उढ़ा ली मैं ने
एक लम्हे को तिरी सम्त से उट्ठा बादल
और बारिश की सी उम्मीद लगा ली मैं ने
ब'अद मुद्दत मुझे नींद आई बड़े चैन की नींद
ख़ाक जब ओढ़ ली और ख़ाक बिछा ली मैं ने
जो 'अलीना' ने सर-ए-अर्श दुआ भेजी थी
उस की तासीर यहीं फ़र्श पे पा ली मैं ने
ग़ज़ल
ज़िंदा रहने की ये तरकीब निकाली मैं ने
अलीना इतरत