जुनूँ में दामन-ए-दिल गरचे तार तार हुआ
मगर ये जश्न सर-ए-कूचा-ए-बहार हुआ
हर एक सज्दे में दिल को तिरा ख़याल आया
ये इक गुनाह इबादत में बार बार हुआ
समेट ली हैं मोहब्बत ने सारी परवाज़ें
दिल-ओ-दिमाग़ में कैसा ये इंतिशार हुआ
नहीं बुझाया हवाओं ने पहली बार चराग़
ये सानेहा तो मिरे साथ बार बार हुआ
किसी के वास्ते तस्वीर-ए-इंतिज़ार थे हम
वो आ गया प कहाँ ख़त्म इंतिज़ार हुआ
अँधेरी शब के मुक़द्दर में इक सवेरा था
ये राज़ मुझ पे दम-ए-सुब्ह आश्कार हुआ
जो तुझ में डूब के देखा तो पा लिया ख़ुद को
'अलीना' यूँ मिरा फिर मुझ पे इख़्तियार हुआ
ग़ज़ल
जुनूँ में दामन-ए-दिल गरचे तार तार हुआ
अलीना इतरत