अजनबी सा इक सितारा हूँ मैं सय्यारों के बीच
इक जुदा किरदार हूँ अपने ही किरदारों के बीच
फिर रही हूँ बे-सबब पागल हवा सी जा-ब-जा
धुँद में लिपटे हुए ख़ामोश कोहसारों के बीच
इस हिसार-ए-ख़ाक को जब तोड़ कर निकलूँगी मैं
ढूँडते रह जाओगे तुम मुझ को दीवारों के बीच
कुछ कड़े टकराओ दे जाती है अक्सर रौशनी
जूँ चमक उठती है कोई बर्क़ तलवारों के बेच
शक्ल ये बेहतर है लेकिन पुख़्तगी के वास्ते
आओ मिटी को रखें कुछ देर अँगारों के बीच
ग़ज़ल
अजनबी सा इक सितारा हूँ मैं सय्यारों के बीच
अलीना इतरत