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अजनबी सा इक सितारा हूँ मैं सय्यारों के बीच | शाही शायरी
ajnabi sa ek sitara hun main sayyaron ke bich

ग़ज़ल

अजनबी सा इक सितारा हूँ मैं सय्यारों के बीच

अलीना इतरत

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अजनबी सा इक सितारा हूँ मैं सय्यारों के बीच
इक जुदा किरदार हूँ अपने ही किरदारों के बीच

फिर रही हूँ बे-सबब पागल हवा सी जा-ब-जा
धुँद में लिपटे हुए ख़ामोश कोहसारों के बीच

इस हिसार-ए-ख़ाक को जब तोड़ कर निकलूँगी मैं
ढूँडते रह जाओगे तुम मुझ को दीवारों के बीच

कुछ कड़े टकराओ दे जाती है अक्सर रौशनी
जूँ चमक उठती है कोई बर्क़ तलवारों के बेच

शक्ल ये बेहतर है लेकिन पुख़्तगी के वास्ते
आओ मिटी को रखें कुछ देर अँगारों के बीच