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याद करना हर घड़ी उस यार का | शाही शायरी
yaad karna har ghaDi us yar ka

ग़ज़ल

याद करना हर घड़ी उस यार का

वली मोहम्मद वली

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याद करना हर घड़ी उस यार का
है वज़ीफ़ा मुझ दिल-ए-बीमार का

आरज़ू-ए-चश्मा-ए-कौसर नईं
तिश्ना-लब हूँ शर्बत-ए-दीदार का

आक़िबत क्या होवेगा मालूम नईं
दिल हुआ है मुब्तिला दिलदार का

क्या कहे तारीफ़ दिल है बे-नज़ीर
हर्फ़ हर्फ़ उस मख़्ज़न-ए-असरार का

गर हुआ है तालिब-ए-आज़ादगी
बंद मत हो सुब्हा ओ ज़ुन्नार का

मसनद-ए-गुल मंज़िल-ए-शबनम हुई
देख रुत्बा दीदा-ए-बेदार का

ऐ 'वली' होना सिरीजन पर निसार
मुद्दआ है चश्म-ए-गौहर-बार का