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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

प्यास ऐसी थी कि मैं सारा समुंदर पी गया
पर मिरे होंटों के ये दोनों किनारे जल गए

त्रिपुरारि




क़त्ल करना है नए ख़्वाब का सो डरता हूँ
काँप जाएँ न मिरे हाथ ये ख़ूँ करते हुए

त्रिपुरारि




रूह है तर्जुमा पानियों का अगर
जिस्म या'नी समुंदर में इक नाव है

त्रिपुरारि




रूह है तर्जुमा पानियों का अगर
जिस्म या'नी समुंदर में इक नाव है

त्रिपुरारि




शेर पढ़ते हुए ये तुम ने कभी सोचा है
शेर कहते हुए मैं कितनी दफ़ा मरता हूँ

त्रिपुरारि




तुम जिसे चाँद कहते हो वो अस्ल में
आसमाँ के बदन पर कोई घाव है

त्रिपुरारि




तुम जिसे चाँद कहते हो वो अस्ल में
आसमाँ के बदन पर कोई घाव है

त्रिपुरारि