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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

तुम मिरे पास न आओ कि यही बेहतर है
पास आने से तो पहचान भी जा सकती है

त्रिपुरारि




उम्र भर लड़ता रहा हूँ उस से
वो जो इक शख़्स कभी था ही नहीं

त्रिपुरारि




उम्र भर लड़ता रहा हूँ उस से
वो जो इक शख़्स कभी था ही नहीं

त्रिपुरारि




ये बारिश कब रुकेगी कौन जाने
कहीं मैं मर न जाऊँ तिश्नगी से

त्रिपुरारि




आवाज़ हूँ उभर के जो सहरा में खो गई
या ज़िंदगी के बहर में मौज-ए-ख़याल हूँ

तुफ़ैल बिस्मिल




आवाज़ हूँ उभर के जो सहरा में खो गई
या ज़िंदगी के बहर में मौज-ए-ख़याल हूँ

तुफ़ैल बिस्मिल




फिर से बिखरी है तिरी ज़ुल्फ़ मिरे शानों पर
वक़्त आया है गए वक़्त को लौटाने का

तुफ़ैल बिस्मिल