तुम मिरे पास न आओ कि यही बेहतर है
पास आने से तो पहचान भी जा सकती है
त्रिपुरारि
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उम्र भर लड़ता रहा हूँ उस से
वो जो इक शख़्स कभी था ही नहीं
त्रिपुरारि
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उम्र भर लड़ता रहा हूँ उस से
वो जो इक शख़्स कभी था ही नहीं
त्रिपुरारि
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ये बारिश कब रुकेगी कौन जाने
कहीं मैं मर न जाऊँ तिश्नगी से
त्रिपुरारि
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आवाज़ हूँ उभर के जो सहरा में खो गई
या ज़िंदगी के बहर में मौज-ए-ख़याल हूँ
तुफ़ैल बिस्मिल
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आवाज़ हूँ उभर के जो सहरा में खो गई
या ज़िंदगी के बहर में मौज-ए-ख़याल हूँ
तुफ़ैल बिस्मिल
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फिर से बिखरी है तिरी ज़ुल्फ़ मिरे शानों पर
वक़्त आया है गए वक़्त को लौटाने का
तुफ़ैल बिस्मिल
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