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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

आतिश-ए-इश्क़ में जो जल न मरें
इश्क़ के फ़न में वो अनारी हैं

ताबाँ अब्दुल हई




अगर तू शोहरा-ए-आफ़ाक़ है तो तेरे बंदों में
हमें भी जानता है ख़ूब इक आलम मियाँ-साहिब

ताबाँ अब्दुल हई




ऐ मर्द-ए-ख़ुदा हो तू परस्तार बुताँ का
मज़हब में मिरे कुफ़्र है इंकार बुताँ का

ताबाँ अब्दुल हई




ऐ मर्द-ए-ख़ुदा हो तू परस्तार बुताँ का
मज़हब में मिरे कुफ़्र है इंकार बुताँ का

ताबाँ अब्दुल हई




ब'अद मुद्दत के माह-रू आया
क्यूँ न उस के गले लगूँ 'ताबाँ'

ताबाँ अब्दुल हई




बुरा न मानियो मैं पूछता हूँ ऐ ज़ालिम
कि बे-कसों के सताए से कुछ भला भी है

ताबाँ अब्दुल हई




बुरा न मानियो मैं पूछता हूँ ऐ ज़ालिम
कि बे-कसों के सताए से कुछ भला भी है

ताबाँ अब्दुल हई