पड़ गई क्या निगह-ए-मस्त तिरे साक़ी की
लड़खड़ाते हुए मय-ख़्वार चले आते हैं
तअशशुक़ लखनवी
क़ाफ़िले रात को आते थे उधर जान के आग
दश्त-ए-ग़ुर्बत में जिधर ऐ दिल-ए-सोज़ाँ हम थे
तअशशुक़ लखनवी
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शोला-ए-हुस्न से था दूद-ए-दिल अपना अव्वल
आग दुनिया में न आई थी कि सोज़ाँ हम थे
तअशशुक़ लखनवी
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शोला-ए-हुस्न से था दूद-ए-दिल अपना अव्वल
आग दुनिया में न आई थी कि सोज़ाँ हम थे
तअशशुक़ लखनवी
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तमाम उम्र कमी की कभी न पानी ने
अजब करीम की रहमत है दीदा-ए-तर पर
तअशशुक़ लखनवी
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उठते जाते हैं बज़्म-ए-आलम से
आने वाले तुम्हारी महफ़िल के
तअशशुक़ लखनवी
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उठते जाते हैं बज़्म-ए-आलम से
आने वाले तुम्हारी महफ़िल के
तअशशुक़ लखनवी
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