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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

क्यूँ करो 'अख़्तर' की बातें वो तो इक दीवाना है
तुम तो यारो अपनी अपनी दास्ताँ कहते रहो

अख़्तर अंसारी अकबराबादी




क्यूँ शिकन पड़ गई है अबरू पर
मैं तो कहता हूँ एक बात की बात

अख़्तर अंसारी अकबराबादी




राह पर आ ही गए आज भटकने वाले
राहबर देख वो मंज़िल का निशाँ है कि नहीं

अख़्तर अंसारी अकबराबादी




सहारा दे नहीं सकते शिकस्ता पाँव को
हटाओ राह-ए-मोहब्बत से रहनुमाओं को

अख़्तर अंसारी अकबराबादी




यही हैं यादगार-ए-ग़ुंचा-ओ-गुल इस ज़माने में
इन्हीं सूखे हुए काँटों से ज़िक्र-ए-गुल्सिताँ लिखिए

अख़्तर अंसारी अकबराबादी




ये रंग-ओ-कैफ़ कहाँ था शबाब से पहले
नज़र कुछ और थी मौज-ए-शराब से पहले

अख़्तर अंसारी अकबराबादी




ज़ुल्म सहते रहे शुक्र करते रहे आई लब तक न ये दास्ताँ आज तक
मुझ को हैरत रही अंजुमन में तिरी क्यूँ हैं ख़ामोश अहल-ए-ज़बाँ आज तक

अख़्तर अंसारी अकबराबादी